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Press, Share | Dec 21, 2016

Wednesday, 21 December 2016

पार्टी का ग्रंथालय : राजनीति की संस्कार शाला

संगठनात्मक कार्यों से विभिन्न प्रदेशों में निरंतर प्रवास चलता ही रहता है, परन्तु इस बार का छत्तीसगढ़ प्रवास एक प्रमुख कारण से विशिष्टतापूर्ण रहा। 12 दिसम्बर 2016 को अन्य संगठनात्मक कार्यक्रमों के साथ-साथ एक विशेष कार्य का शुभारंभ हुआ। यह अवसर था जब ‘नानाजी देशमुख स्मृति वाचनालय’ तथा पार्टी के ई-ग्रंथालय का उद्घाटन हुआ। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश एवं जिला कार्यालयों में बनने वाली पुस्तकालयों की शृंखला में यह पहला ग्रंथालय है। इसे एक आदर्श ग्रंथालय के रूप में तैयार किया गया है तथा नानाजी देशमुख जन्म शताब्दी वर्ष की उपलक्ष्य में इसका नाम ‘नानाजी देशमुख स्मृति वाचनालय’ रखा गया है। केवल दो महीने के अल्पावधि में निर्मित इस ग्रंथालय में विभिन्न श्रेणियों के 10,255 पुस्तकें उपलब्ध हैं। आधुनिक तकनीकों से युक्त इस ग्रंथालय में पार्टी दस्तावेज, दुर्लभ पांडुलिपियां, संविधान, इतिहास, दर्शन आदि विषयों से संबंधित अनेक पुस्तक-पुस्तिकाएं उपलब्ध हैं। वाई-फाई सुविधा से युक्त यहां पर्याप्त जगह उपलब्ध है जहां बैठकर अध्ययन किया जा सकता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह ग्रंथालय अन्य प्रदेशों के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करेगा।

इस तरीके के ग्रंथालय अब हर प्रदेश एवं जिला कार्यालय में निर्माण हो रहे हैं। इससे पूर्व 5 फरवरी 2016 को राष्ट्रीय कार्यालय में केन्द्रीय ग्रंथालय के उद्घाटन का अवसर मिला था। यह कई महीनों के अथक प्रयासों का ही परिणाम था कि पार्टी मुख्यालय में एक सुव्यवस्थित ग्रंथालय का निर्माण हो पाया। एक राष्ट्रीय राजनैतिक पार्टी के मुख्यालय मं1 निर्मित होने वाला ग्रंथालय हर दृष्टि से उपयोगी हो तथा पार्टी कार्यकर्ता, मीडिया के बंध, शोधार्थी, विश्वविद्यालय छात्र से लेकर किसी सामान्य पाठक के उपयोग में आये, इसका ध्यान रखा गया। एक आधुनिक ग्रंथालय की भांति इसे नवीनतम तकनीकों से सुसज्जित किया गया है। ग्रंथालय प्रबंधन व्यवस्था के अत्याधुनिक उपकरणों का उपयोग किया जा रहा है। इसके साथ ही सूचना प्रौद्योगिकी की तकनीकों का उपयोग कर डिजिटल ग्रंथालय (www.bjplibrary.org) भी विकसित किया गया है। इस ई-ग्रंथालय में 3620 पुस्तकें अभी उपलब्ध हैं और यह किसी राजनैतिक दल की दृष्टि से दुनिया में यह पहला प्रयोग है। इसे सोशल मीडिया से भी जोड़ा गया है (@BjpLibrary)। साथ ही यह भी ध्यान में रखा गया है कि केन्द्रीय ग्रंथालय का जीवंत संपर्क विभिन्न प्रदेशों में स्थापित होने वाले पुस्तकालयों से हो, ताकि ऐसी व्यवस्था विकसित की जाय कि पुस्तकालयों का एक व्यापक नेटवर्क पार्टी के पास उपलब्ध हो। आने वाले दिनों में यह पार्टी की बड़ी पूंजी साबित होगी।

किसी को लग सकता है कि भला राजनीतिक दल के कार्यालय में ग्रंथालय की क्या जरूरत है? यह तो राजनीतिक उठापटक का केंद्र है, रणनीति की प्रयोगशाला है या फिर मीडिया से मिलने जुलने का स्थान है। मगर मुझे बताना चाहिए कि स्वाधीनता के पूर्व और उसके पश्चात भी राजनीति में ’विचारक’ राजनेताओं की एक स्वथ्य, समृद्ध परंपरा रहती आयी है। गोपाल कृष्ण गोखले, महात्मा गांधी, वीर सावरकर, राम मनोहर लोहिया, दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी इत्यादि से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक कितने सारे राजनेता लेखक, चिंतक, कवि या विचारक भी रहे हैं। यही कारण था कि भारतीय राजनीति में जनतंत्र के प्रति आस्था बनी रही। इसी धारा को आज के वर्तमान युग में हमें हर प्रदेश में बरकरार रखना है तो लिखने-पढ़ने-अध्ययन करने वाले लोग राजनीति में आने चाहिए और राजनीति करने वालों ने लिखने-पढ़ने का अभ्यास निरंतर रखना चाहिए। यह होना है तो कम से कम हर प्रदेश कार्यालय में ग्रंथालय होना जरूरी है। ऐसे ग्रंथालय कार्यकर्ता की स्वयंम्-शिक्षा का प्रारंभ-बिंदु है। हम इन ग्रंथालयों से राजनीति के चित्र-चरित्र में सकारात्मक बदलाव ले आ पाएंगे यह हमारा दृढ़ विश्वास है।

जहां तक भाजपा की बात है, इसका तो जन्म ही वैकल्पिक विचार देने के लक्ष्य के साथ हुआ। हम विचारधारा-आधारित पार्टी हैं तथा सिद्धांतों एवं मूल्यों के आधार पर राजनीति करने में विश्वास रखते हैं। इसलिए यह अति आवश्यक है कि हमारे कार्यकर्ता अपने विचार एवं सिद्धांतां को समझे, फिर उस पर पर अडिग रहें और इसके लिए निरंतर अध्ययनशील बनें। आशा है कि पार्टी कार्यालयों में अत्याधुनिक ग्रंथालयों के निर्माण से इस दिशा में कार्यकर्ताओं को तत्पर रहने में सहायता मिलेगी। पार्टी पुस्तकालयों से हमारे कार्यकर्ता वैचारिक रूप से और अधिक सजग, सुदृढ़ एवं परिपक्व बनेंगे और उसी से एक नयी राजनितिक संस्कृति का उदय होगा।

मेरी कार्यकर्ताओं से अपील है कि वह ग्रंथालयों में आने-जाने, पढ़ने का क्रम बनाए रखें। ग्रंथालय का मूल स्वरूप ’वचानालय’ का है। यहां आकर जो पढ़ेगा, वहीं बढ़ेगा। हमने हर महीने एक या दो किताबे पढ़नी चाहिए। उस पर अपना अभिप्राय लिखना चाहिए। किताबों पर आपस में चर्चा होनी। कार्यकर्ता अपने संग्रह की किताबें, ऐसे ग्रंथालयों को भेंट करे तो और भी अच्छा। इन्हीं प्रयासों से पार्टी में वाचन की संस्कृति बढ़ेगी। देश की राजनीतिक संस्कृति बदलने की गंगोत्री ऐसे ग्रंथालयों में है इस तथ्य को हम न भूले।

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