PRESS: SHRI SHRIKANT SHARMA ON CLEAN CHIT TO SHRI AMIT SHAH BY CBI SPECIAL COURT IN SOHRABUDDIN CASE

Press, Share | Dec 31, 2014

भारतीय जनता पार्टी के राष्‍ट्रीय सचिव श्रीकांत शर्मा का वक्‍तव्‍य सत्‍यमेव जयते

सीबीआई की विशेष अदालत ने मंगलवार को भारतीय जनता पार्टी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष श्री अमित शाह को सोहराबुद्दीन मुठभेड़ मामले में उन पर लगे सभी झूठे आरोपों से मुक्‍त कर दिया। अदालत ने वादी पक्ष सोहराबुद्दीन के भाई और सीबीआई की सभी दलीलें खारिज कर कहा कि श्री शाह के खिलाफ वैध साक्ष्‍य नहीं हैं। इस अहम फैसले से दो निष्‍कर्ष निकलते हैं। पहला, सीबीआइ ने तत्‍कालीन राजनीतिक नेतृत्‍व के दवाब में श्री शाह को इस मामले में फंसाया और दूसरा, जांच एजेंसी ने यह पूरा जाल सुनी-सुनाई बातों पर बुना। भाजपा लंबे समय से कह रही है कि कांग्रेस ने अपने राजनीतिक हित साधने को सीबीआइ सहित विभिन्‍न जांच व कानून प्रवर्तनकारी एजेंसियों का दुरुपयोग किया। इस निर्णय के बाद यह बिल्‍कुल स्‍पष्‍ट हो गया है।

नवंबर 2005 में पाकिस्‍तानी आतंकी संगठन लश्‍कर-ए-तैयबा से संबंध रखने वाले सोहराबुद्दीन शेख की पुलिस के साथ मुठभेड़ में मौत हुई थी। सोहराबुद्दीन मध्य प्रदेश के झारनिया गांव का रहने वाला था। वह कई आपराधिक मामलों में लिप्‍त रहा। वह उदयपुर, अहमदाबाद और उज्जैन से गिरोह चलाता था। वह जबरन वसूली के कई मामलों में आरोपी भी था। सोहराबुद्दीन के संबंध लश्‍कर ए तैयबा से पनपने की सूचना खुफिया एजेंसियों को मिली। जब आतंकवादी निरोधक दस्‍ते ने उसे हिरासत में लेने की कोशिश की तो उसने गोलीबारी शुरु कर दी और इस तरह मुठभेड़ में उसकी मौत हो गई।

यह घटना गुजरात विधान सभा चुनाव-2007 से ठीक पहले हुई। राज्‍य में लगातार चुनाव हार रही कांग्रेस ने तुष्‍टीकरण की नीति अपनाई और इसे राजनीतिक रंग देते हुए फर्जी मुठभेड़ के तौर पर प्रचारित किया। चुनाव में कांग्रेस की करारी हार हुई। उसका दांव उल्‍टा पड़ गया। बौखलाई कांग्रेस इसकी जांच सीबीआइ के सुपुर्द करने पर अड़ गई। मामला आखिरकार जनवरी 2010 में सीबीआइ के पास आ गया है। जनता के बीच लगातार अलोकप्रिय होती जा रही कांग्रेस के नेतृत्‍व वाली संप्रग सरकार ने भाजपा के प्रमुख नेताओं को इस मामले में फंसाने के लिए सीबीआइ पर दवाब डाला। सीबीआई ने जुलाई 2010 में श्री अमित शाह को गिरफ्तार किया।

इस तरह कांग्रेस के इशारे पर श्री शाह को फंसाने का यह षड़यंत्र रचा गया। अदालत का कहना है कि सीबीआइ ने इस मामले में सिर्फ श्री शाह की कॉल डिटेल ही खंगाली। विशेष न्‍यायाधीश ने अपने फैसले में इस बात की पुष्टि करते हुए कहा है कि वास्‍तविक वार्तालाप के आधार पर अपराध में आरोपी ( श्री शाह) की मिलीभगत साबित नहीं होती। सीबीआई ने पूरी कॉल रिकार्डस नहीं जुटाईं। सीबीआइ ने अपनी जांच को सिर्फ आरोपी ( श्री शाह) की काल्‍स तक ही सीमित रखा। वास्‍तविक वार्तालाप के बगैर आरोपी का संबंध वास्‍तविक अपराध से स्‍थापित नहीं किया जा सकता। सीबीआई ने सिर्फ रुबीबुद्दीन, नइमुद्दीन और अन्‍य लोगों पर भरोसा किया। जबकि रुबीबुद्दीन, नइमुद्दीन और महेन्‍द्र सिंह झाला के बयान आरोपी (श्री शाह) की ओर इशारा नहीं करते।

अदालत की यह टिप्‍पणी भाजपा के इस आरोप को सही साबित करती है कि सीबीआइ उस समय (कांग्रेस ब्‍यूरो ऑफ इन्‍वेस्टिगेशन) के रूप में काम कर रही थी।

अदालत ने सीबीआई की उस दलील को भी खारिज कर दिया जिसमें उसने एसपी और गुजरात के तत्‍कालीन गृह मंत्री श्री अमित शाह के मध्‍य संपर्क होने की बात कही थी। अदालत ने कहा कि सीबीआई के अनुसार मंत्री का एसपी के संपर्क में रहना अस्‍वाभाविक है। हाल में आतंकवादी घटनाएं बढ़ी हैं और पूरी दुनिया में तेजी से फैल रही हैं। अगर गृह मंत्री जमीनी स्‍तर पर पुलिस के साथ मिलकर कार्य करता है तो यह अस्‍वाभाविक नहीं है।

अदालत ने अपने फैसले में माना कि इस मामले में श्री शाह को फंसाने का पूरा जाल सीबीआइ ने सुनी-सुनाई बातों और अफवाहों पर बुना। अदालत के समक्ष इस मामले में गवाहों ने जो बयान दिए उससे यह बात स्‍पष्‍टत: साबित होती है। अदालत ने अपने आदेश में भी कई स्‍थानों पर इस बात का उल्‍लेख किया है कि किस तरह गवाहों के बयान तथ्‍यों की बजाय सिर्फ अफवाहों पर आधारित थे इसलिए उन्‍हें कानूनी साक्ष्‍य नहीं माना जा सकता।

निष्‍कर्षत: अदालत ने साफ कहा कि सोहराबुद्दीन मुठभेड़ कांड में श्री शाह के शामिल होने संबंधी आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्‍त सबूत नहीं हैं।

यह फैसला सत्‍य की जीत है। इस निर्णय से कांग्रेस के साथ-साथ भ्रष्‍ट व कथित धर्मनिरपेक्ष दलों का दोहरा चरित्र उजागर हो गया है। इस मुद्दे पर कथित बुद्धिजीवियों की चुप्‍पी उनकी पोल खोलती है। साथ ही यह भी साबित होता है कि कथित बुद्धिजीवी व स्‍वयंभू धर्मनिरपेक्ष दल अपने संरक्षक भ्रष्‍ट राजनीतिक दलों के हितसाधन के लिए आतंकवाद जैसे मुद्दे पर भी तुष्‍टीकरण की नीति अपनाते हैं। इन सबको आज कांग्रेस के प्रथम परिवार से प्रश्‍न करना चाहिए कि उन्‍होंने सत्‍ता में रहते वक्‍त सीबीआइ का दुरुपयोग क्‍यों किया। साथ ही राजनी‍तिक फायदे के लिए सीबीआइ का दुरुपयोग करने वाली कांग्रेस की भर्त्‍सना करनी चाहिए। कांग्रेस ने सत्‍ता में रहते हुए जहां विरोधी नेताओं को फंसाने के लिए सीबीआइ का इस्‍तेमाल किया वहीं अपने भ्रष्‍ट नेताओं को इसकी मदद से बचाया भी। कांग्रेस ने सीबीआइ पर दवाब डालकर अशोक च्‍वहाण सहित अपने कई नेताओं को भ्रष्‍टाचार के मामलों में बचाया।

इस तरह विशेष अदालत के फैसले से स्‍पष्‍ट होता है कि कांग्रेस राजनीतिक तरीके से जीत नहीं सकती इसलिए उसने कुटिल चाल चलकर श्री शाह की छवि धूमिल करने को घिनौनी साजिश रची। इसके लिए कांग्रेस की जितनी भर्त्‍सना की जाए उतनी कम है। कांग्रेस अध्‍यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी को इस घृणित कृत्‍य के लिए पूरे देश से माफी मांगनी चाहिए।

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