Press, Share | Jul 15, 2017
Saturday, 15 July 2017
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह द्वारा डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी पर रचित पुस्तक ‘श्यामा प्रसाद मुखर्जी - हिज विजन ऑफ़ एजुकेशन' के लोकार्पण अवसर पर दिए गए उद्बोधन के मुख्य बिंदु
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी के जीवन और देश के लिए उनके योगदान को देखें तो इतिहास और इतहास लिखने वाले, दोनों ने उनके साथ अन्याय किया है
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जो बीज 1950 में भारतीय जन संघ के रूप में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी ने बोया था, आज वह भारतीय जनता पार्टी रूपी बटवृक्ष बन कर देश को विकास के पथ पर आगे ले जा रहा है
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जन संघ की स्थापना के समय डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने यह तय किया था कि इस पार्टी का आधार सांस्कृतिक राष्ट्रवाद होगा और लक्ष्य अंत्योदय। भाजपा आज भी इन्हीं सिद्धांतों के आधार पर काम कर रही है ताकि विकास की पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति को पंक्ति में खड़े प्रथम व्यक्ति के बराबर लाया जा सके
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प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र की भारतीय जनता पार्टी सरकार ने अपनी हर नीति के अंदर अंत्योदय के सिद्धांत को समाहित किया है
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मोदी सरकार यदि देश के विकास के लिए शुरू की गई ऐतिहासिक कार्यों को अंजाम तक पहुंचा कर देश के गाँव, गरीब, किसान, दलित, शोषित, युवा एवं महिलाओं की जिंदगी में खुशहाली लाने में सफल हो रही है तो इसके मूल में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी के ही सिद्धांत हैं
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परिवारवाद, जातिवाद और तुष्टीकरण की राजनीति ने इस देश को काफी नुकसान पहुंचाया है और दुर्भाग्य से इन तीनों कुरीतियों की जनक कांग्रेस पार्टी ही है
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देश में जहां-जहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी वहां से परिवारवाद भी गया, जातिवाद भी गया और तुष्टीकरण की राजनीति का भी अंत हुआ, उत्तर प्रदेश में बिना किसी जाति के आधार पर भारतीय जनता पार्टी को मिली 325 सीटें इसका उदाहरण है
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डॉ मुखर्जी जी का मानना था कि भारत में लोगों की नैसर्गिक प्रतिभा और देश की मूल संस्कृति से मेल खाती शिक्षा पद्धति होनी चाहिए
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डॉ मुखर्जी कोई समझौता किये बगैर शिक्षा की गुणवत्ता को अक्षुण्ण रखते हुए इसे जन सुलभ बनाना चाहते थे, साथ ही वे शिक्षा, व्यापार जगत, देश की जरूरत और रिसर्च के बीच पारस्परिक संबंध की भी पुरजोर वकालत करते थे
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श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी ने ‘एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान - नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे' का नारा दिया और कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाने के लिए अपने प्राणों की भी आहुति दे दी
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यदि आज जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल और पंजाब भारत का अभिन्न अंग है तो इसमें डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का योगदान सबसे अहम् है
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भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह ने आज नई दिल्ली के नेहरू मेमोरियल में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी के व्यक्तित्व के अनछुए पहलुओं को प्रकाशित करती पुस्तक ‘श्यामा प्रसाद मुखर्जी - हिज विजन ऑफ़ एजुकेशन' के लोकार्पण अवसर पर आयोजित समारोह को संबोधित किया और डॉ मुखर्जी जी के देश के प्रति अतुल्य योगदान को याद किया। उन्होंने श्री मुखर्जी जी के शिक्षाविद् स्वरूप को समाज के सामने लाने के लिए डॉ अनिर्बान गांगुली और प्रोफ़ेसर अवधेश सिंह जी को हृदय से साधुवाद दिया।
श्री शाह ने कहा कि डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी के जीवन और देश के लिए उनके योगदान को देखें तो इतिहास और इतहास लिखने वाले, दोनों ने उनके साथ अन्याय किया है हालांकि मैं इससे आश्चर्यचकित नहीं हूँ क्योंकि जो भी देश के लिए जीता है, देश के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर देता है, जो भी धारा से हटकर समाज को एक नया रास्ता दिखाता है, उन सभी लोगों के साथ ऐसा अन्याय होता ही है। उन्होंने कहा कि श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, केवल 53 वर्ष के अपने जीवन में उन्होंने कई ऐतिहासिक कार्य किये। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में श्री मुखर्जी जी के कई महत्वपूर्ण भाषणों को प्रकाशित किया गया है लेकिन मैं उनके द्वारा दिए गए दो भाषणों, एक बंगाल विधानसभा में और दूसरा देश की संसद में दिए गए ऐतिहासिक भाषण का जिक्र अवश्य करना चाहूंगा जिसने देश में बहुत बड़े अनर्थ को रोका था। उन्होंने कहा कि 1940 में बंगाल विधानसभा में एक बिल पेश किया गया था जो शिक्षा का इस्लामीकरण करने का प्रस्ताव था जिसको केवल डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की दूरदर्शिता के कारण लागू नहीं किया जा सका। उन्होंने कहा कि 1951 में केंद्र सरकार विश्व भारती अधिग्रहण बिल लेकर आई थी, उस वक्त भी श्री शायमा प्रसाद मुखर्जी ने अकेले आवाज बुलंद की थी जिसके कारण ही शिक्षा को देश की संस्कृति के साथ जोड़ने वाले संस्थान बच पाए।
भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि शिक्षा पर डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी के सभी भाषणों का थोड़ा बारीकी से अध्ययन करें तो उनकी शिक्षा नीति को आठ सिद्धांतों में बांटा जा सकता है। उन्होंने कहा कि डॉ मुखर्जी जी का मानना था कि भारत में लोगों की नैसर्गिक प्रतिभा और देश की मूल संस्कृति से मेल खाती शिक्षा पद्धति होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि श्री मुखर्जी का मानना था कि देश की प्राथमिक शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा या फिर उच्च शिक्षा, सभी एक दूसरे की पूरक होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि डॉ मुखर्जी कोई समझौता किये बगैर शिक्षा की गुणवत्ता को अक्षुण्ण रखते हुए इसे जन सुलभ बनाना चाहते थे, साथ ही वे शिक्षा, व्यापार जगत, देश की जरूरत और रिसर्च के बीच पारस्परिक संबंध की भी पुरजोर वकालत करते थे। उन्होंने कहा कि डॉ मुखर्जी ने उस वक्त देश के उन व्यक्तियों के लिए भी शिक्षा की वकालत की थी जिनकी शिक्षा के लिए उम्र बीत गई है। राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी के ये सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं, यदि हम उनके इन सिद्धांतों पर चलें तो शिक्षा को बहुत गति मिल पायेगी और इससे सारी विकृतियाँ भी बाहर हो जायेगी।
श्री शाह ने कहा कि श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी के पूरे जीवन, उनकी व्यक्तित्व और कृतित्व को इतने कम समय में बताना संभव नहीं है फिर भी मैं उनके जीवन के तीन प्रमुख बिंदुओं का प्रमुखता से उल्लेख करना चाहूंगा - पहला, बंगाल का विभाजन, दूसरा कश्मीर को देश का अभिन्न अंग बनाने के लिए आंदोलन व अपने प्राणों की भी आहुति दे देना और तीसरा, भारतीय जन संघ की स्थापना करके देश में एक वैकल्पिक विचारधारा की शुरुआत करना।
भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि पश्चिम बंगा को बचाने में श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी का योगदान काफी अहम् रहा है। उन्होंने कहा कि जब कांग्रेस ने धर्म के आधार पर देश का बंटवारा स्वीकार किया तो इस आधार पर बंगाल का पाकिस्तान में जाना तय हुआ। उन्होंने कहा कि मैं आज भी यह समझ नहीं पाता हूँ कि आखिर कांग्रेस ने किस कारण देश का धर्म के आधार पर विभाजन स्वीकार किया था। उन्होंने कहा कि डॉ मुखर्जी ने इस अनर्थ को रोकने के लिए बंगाल में आंदोलन शुरू किया, उन्होंने सारे बांग्ला बुद्धिजीवियों को एक मंच पर इकट्ठा किया और बंगाल के विभाजन की मांग की। उन्होंने कहा कि उस वक्त अमृत बाजार पत्रिका ने एक जनमत संग्रह किया था जिसमें पश्चिम बंगाल के 98% लोगों ने डॉ मुखर्जी के इस मांग का समर्थन किया कि बंगाल का विभाजन होना चाहिए। उन्होंने कहा कि जनमानस की भावना को लेकर श्री मुखर्जी तत्कालीन गवर्नर जनरल से मिले और बंगाल के विभाजन को मान्यता मिली। उन्होंने कहा कि यदि आज पश्चिम बंगाल भारत का हिस्सा है तो इसमें सबसे महत्वपूर्ण योगदान डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी का है। उन्होंने कहा कि डॉ मुखर्जी के इन्हीं प्रयासों के कारण पंजाब भी भारत का हिस्सा बना रह सका लेकिन श्री मुखर्जी के इस योगदान को न तो इतिहास ने उजागर किया और न ही देश की सरकारों ने।
श्री शाह ने कहा कि कबालियों के हमले के बाद जल्दबाजी में सरकार ने कश्मीर से समझौता किया और फिर इस मामले को यूएन में भी ले जाने की गलती की गई, जिसका खामियाजा यह हुआ कि एक ही देश में दो संविधान, दो झंडे और दो प्रधानमंत्री की विचित्र स्थिति उत्पन्न हो गई। उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान के लोगों को कश्मीर जाने के लिए परमिट लेनी पड़ती थी, श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी ने इस व्यवस्था के खिलाफ ‘एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान - नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे' का नारा दिया। उन्होंने कहा कि कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाने के उद्देश्य से श्री मुखर्जी ने आंदोलन किया और परमिट के खिलाफ सत्याग्रह किया और कश्मीर की यात्रा की। उन्होंने कहा कि कश्मीर जाने के क्रम में उन्हें पंजाब बॉर्डर पर रोका नहीं गया जबकि उनके पास परमिट नहीं थी कश्मीर जाने की। उन्होंने कहा कि यदि पंजाब में उनकी गिरफ्तारी होती तो वे पंजाब पुलिस की कस्टडी में होते लेकिन उन्होंने पंजाब में नहीं रोक कर कश्मीर में प्रवेश करने दिया गया और कश्मीर में उन्हें गिरफ्तार किया गया ताकि उन पर भारत का क़ानून न लागू हो। उन्होंने कहा कि कश्मीर के जेल में रहस्यमय परिस्थितियों में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी का असामयिक निधन हो गया और उसकी जांच भी नहीं की गई। उन्होंने कहा कि देश की एकता और अखण्डता के लिए अपने प्राणों की आहुति दे देने वाले महान मनीषी डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी के योगदान को हम जितना भी याद करें, कम है। उन्होंने कहा कि श्री मुखर्जी के बलिदान के कारण पूरे देश में जन-जागृति फ़ैली और सत्ताधीशों को भी झुकना पड़ा, परमिट प्रथा को ख़त्म करना पड़ा। उन्होंने कहा कि यदि जम्मू-कश्मीर आज भारत का अभिन्न अंग है तो इसमें डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का योगदान सबसे अहम् है।
भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि देश की आजादी के बाद जब पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में सर्वदलीय सरकार का गठन हुआ तो डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी देश के प्रथम उद्योग मंत्री बने। उन्होंने कहा कि जब पंडित नेहरू के नेतृत्व में देश के विकास की नीतियों का निर्धारण हो रहा था तब जैसे-जसे नीतियों के मसौदे जनता के सामने आने लगे तो देश के बहुत सारे लोगों को लगा कि यदि देश इन नीतियों पर चलता रहा तो देश काफी पीछे चला जाएगा। उन्होंने कहा कि देश की नीतियों में देश की मिट्टी की महक ही मौजूद नहीं थी और ऐसे समय में जब लियाकत अली के साथ पंडित नेहरू ने समझौता किया तो श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने सरकार से इस्तीफा दे दिया और छह महीने तक देश भर में घूम-घूम कर उन्होंने सामान विचारधारा वाले लोगों के साथ चर्चा की और भारतीय जन संघ का गठन करने का निर्णय लिया गया ताकि देश के सामने एक वैकल्पिक नीति लाया जा सके। उन्होंने कहा कि भारतीय जन संघ की स्थापना एक ऐसी नीति राष्ट्र के सामने देने के लिए की गई थी जिसमें भारत की समस्याओं का समाधान समाहित हो और भारतीय दृष्टिकोण परिलक्षित होता हो। उन्होंने कहा कि 10 सदस्यों के साथ भारतीय जन संघ की स्थापना की गई थी और 10 सदस्यों से शुरू हुई पार्टी आज 11 करोड़ से अधिक सदस्यों के साथ विश्व की सबसे बड़ी राजनीति पार्टी है। उन्होंने कहा कि जिस संगठन को स्थापना के वक्त दूर-दूर तक सत्ता मिलने की कोई संभावना नहीं थी आज उसके 1387 विधायक हैं, 330 सांसद हैं, तेरह राज्यों में सरकारें हैं, चार अन्य राज्यों में सहयोगियों के साथ सरकार है और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार है। उन्होंने कहा कि जो बीज 1950 में भारतीय जन संघ के रूप में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी ने बोया था, आज वह भारतीय जनता पार्टी रूपी बटवृक्ष बन कर देश को विकास के पथ पर आगे ले जा रहा है।
श्री शाह ने कहा कि परिवारवाद, जातिवाद और तुष्टीकरण की राजनीति ने इस देश को काफी नुकसान पहुंचाया है और दुर्भाग्य से इन तीनों कुरीतियों की जनक कांग्रेस पार्टी ही है। उन्होंने कहा कि देश में जहां-जहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी वहां से परिवारवाद भी गया, जातिवाद भी गया और तुष्टीकरण की राजनीति का भी अंत हुआ, उत्तर प्रदेश में बिना किसी जाति के आधार पर भारतीय जनता पार्टी को मिली 325 सीटें इसका उदाहरण है। उन्होंने कहा कि जन संघ की स्थापना के समय डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी के नेतृत्व में राष्ट्र मनीषियों ने तय किया था कि इस पार्टी का आधार सांस्कृतिक राष्ट्रवाद होगा और लक्ष्य अंत्योदय। उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी आज भी इन्हीं दोनों सिद्धांतों के आधार पर काम कर रही है ताकि विकास की पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति को पंक्ति में खड़े प्रथम व्यक्ति के बराबर लाया जा सके। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र की भारतीय जनता पार्टी सरकार ने अपनी हर नीति के अंदर अंत्योदय के सिद्धांत को समाहित किया है चाहे वह 28 करोड़ लगों के बैंक अकाउंट खोल कर उन्हें देश के अर्थतंत्र की मुख्यधारा में जोड़ना हो, साढ़े चार करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण कर महिलाओं व बच्चियों को सम्मान के साथ जीने का अधिकार देना हो, 2।5 करोड़ गरीब महिलाओं के घर में गैस सिलिंडर पहुंचाकर उनके आत्मसम्मान व आत्मविश्वास में वृद्धि करना हो, बिजली से वंचित 18 हजार गाँवों में से 13 हजार गाँवों में बिजली पहुंचानी हो अथवा प्रधानमंत्री मुद्रा बैंक योजना के माध्यम से देश के करोड़ों नौजवानों को स्वरोजगार का अवसर उपलब्ध कराना हो।
भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि मोदी सरकार ने सरकार के उद्देश्यों व लक्ष्यों के बीच के अंतर्द्वंदों को ख़त्म करने का काम किया है। उन्होंने कहा कि देश के विकास के लिए मोदी सरकार यदि इस तरह के ऐतिहासिक कार्यों को अंजाम तक पहुंचा कर देश के गाँव, गरीब, किसान, दलित, शोषित, युवा एवं महिलाओं की जिंदगी में खुशहाली लाने में सफल हो रही है तो इसके मूल में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी के ही सिद्धांत हैं। उन्होंने एक बार फिर से डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी के व्यक्तित्व को देश की जनता के सामने पुस्तक के रूप में लाने के लिए डॉ अनिर्बान गांगुली और श्री अवधेश सिंह को कोटि-कोटि साधुवाद दिया और हृदय से अभिनंदन किया।